....हाशिये से.

कुछ मोती... कुछ शीप..!!!



Thursday, July 29, 2010

भोपाल का गुमनाम मसीहा !!!


भोपाल गैस ञासदी पर अदालत का फैसला आया तो हर किसी ने एंडरसन से लेकर भोपाल के खलनायकों की जमकर खैर खबर ली.कोई भोपाल ञासदी के सबसे बडे खलनायक एंडरसन को भारत से भगाये जाने पर बैचैन नजर आया ,तो किसी को एंडरसन को भारत से सुरक्षित भगाने में शामिल रहे खलनायकों की तलाश थी .लेकिन उन नायकों की याद बहुत ही कम लोगों को आयी .जिन्‍होंने खुद को दांव पर लगाकर कईयों की जान बचायी .ऐसे ही नायक हैं,उस वक्‍त भोपाल के थ्री ईएमई सेंटर में तैनात रहे मेजर गुरचरण सिंह खनूजा.जो लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से सेना से सेवा मुक्‍त होने के बाद इन दिनों गुमनामी के अंधेरे में जी रहे हैं.खनूजा ने भोपाल गैस ञासदी में कोई बारह हजार लोगों की जान बचाई और उसी वक्‍त आंखों में हुई जलन ने धीरे धीरे उनकी आंखों की रोशनी छीन ली.

भारतीय सेना की इलेक्ट्रिक मैकेनिक इंजीनियरिंग सेवा से लेफ्टीनेंट कर्नल के पद से रिटायर गुरचरण सिंह खनूजा ने यह सब उस वक्‍त किया जब वे खुद गहरे सदमें में डूबे हुये थे. और यह सदमा था एक साथ घर के छह लोगों की मौत से जुडा हुआ.ये मौतें भी भोपाल गैस ञासदी की वजह से नहीं हुई.तत्‍कालीन प्रधानमंञी इंदिरा गांधी की हत्‍या के बाद भडके सिक्‍ख विरोधी दंगों में हुई. स्‍वर्णमंदिर में अपने परिवार की कुशलता की कामनाओं के साथ मत्‍था टेककर देवास मध्‍यप्रदेश स्थित अपने घर की ओर रवाना हुये उनके परिवार के छह जनों को हरियाणा के पास चलती हुई ट्रेन से उतारकर जिंदा जला दिया गया और मध्‍यप्रदेश के देवास में खनूजा के पिता की दुकानों को भी उसी तरह आग के हवाले कर दिया गया.
परिवार पर आयी इस विपदा से निपटने के लिये खनूजा दिल पर पत्‍थर ही रख रहे थे कि हादसे के महीने भर बाद 23 दिसंबर 1984 की वह मनहूस रात आ गयी. भोपाल के यूनियन कारबाइड कारखाने में हुई गैस रिसाव की घटना में हर कोई अपनी और अपने परिवार की खॅर मांगते हुये भोपाल से बाहर की तरफ भागने की जुगत में जुटा था.कोई यह सोचते हुये ही बेहोश होकर वहीं गिर गया...तो कोई आंखों में जलन के कारण अस्‍पताल में जा पहुंचा. अपने अधिकारी के आदेश पर एक सैनिक अधिकारी की तरह खनूजा पूरे जूनून के साथ लोगों की जान बचाने में जुट गये.खनूजा अपने इस काम में तब तक जुटे रहे जब तक कि खुद बेहोशी की हालत मे अस्‍पताल में भर्ती नहीं करा दिये गये.उस रात सेफ्टी वाल्‍व का रिसाव रोकने और लोगों को तुरंत अस्‍पताल पहुंचने में कितने लोगों की जान बची.यह भी खनूजा को तब पता चला...जब उनकी इस बहादुरी को बाद में अखबारों ने कवर किया.

''इट वाज फाइव पास्‍ट मिड नाइट'' इन भोपाल नामक पुस्‍तक में डोमिनिक लेपिरियर और जेवियर मोरो ने भोपाल ञासदी के इस रियल हीरो का कई बार जिक्र किया है .लेकिन पुस्‍तक के इन पन्‍नों से परे जिंदगी के पन्‍नों को पलटकर देखें तो इस जांबाज की जिंदगी में सेना और सैन्‍य कार्यों के लिये मिले तमगों के अलावा उपेक्षा ही उपेक्षा है.उपेक्षा भी ऐसी कि इस हीरों में अपना आदर्श तलाशते सैन्‍य अधिकारियों और आम नागरिकों के चेहरे पर सरकार को लेकर गुस्‍सा साफ उभर आता है . हालांकि इस जांबाज के चेहरे पर आज भी वही संतुष्टि का भाव है..जो उस वक्‍त हजारों लोगों की जान बचाते वक्‍त रहा होगा.71 वर्षीय खनूजा बारह हजार लोगों की जान बचाने का श्रेय खुद को नहीं अपने साथ गये उन छब्‍बीस जवानों को देते हैं.जो गाडियों में भर भर कर लोगों को गैस प्रभावित इलाकों से निकाल कर अस्‍पताल तक पहुचा रहे थे. इस बहादुरी भरे काम के लिये खनूजा उस वक्‍त थ्री ईएमई भोपाल के कमांडर रहे ब्रिगेडियर एमएनके नायर के शुक्रगुजार हैं.जिनके आदेश की बदौलत वे न सिर्फ मौके पर पहुंचे बल्कि पुराने भोपाल की करीब पंद्रह कॉलोनियों से हजारों की भीड को वहां से निकाल सके.यही नहीं खनूजा के सभी 26 साथी जवानों ने हजारों की तादाद में बुरी तरह प्रभावित लोगों को मिलिट्री और सिविल अस्‍पताल पहुंचाया.गैस रिसाव की घटना के तीन घण्‍टे बाद भी रिसाव जारी था और ज्‍योंही खनूजा को रिसाव वाले टैंकर्स की जानकारी मिली वे उस रिसाव को रोकने में जुट गये.खनूजा ने यह सब उस सूरत में किया जब भोपाल के उस वक्‍त एडीएम रहे तिवारी और दूसरे पुलिस प्रशासन कर्मी लोगों को निकालने की बजाय अपनी खैर मांग रहे थे.
भारतीय सेना के इस जांबाज अफसर के जेहन में वह हादसा आज भी फिल्‍मी रील की तरह घूमता है. इस हादसे के बाद पूरा परिवार जहां सांस की बीमारी की चपेट में आ गया.वहीं खुद खनूजा की आंखें भी पिगमेंट रेटिनल डिस्‍ट्रोफी के कारण लगातार रोशनी खोती जा रही है.उस गैस रिसाव के बाद फेफडे खराब हो गये हैं,सो अलग.लेकिन खनूजा को सरकारी दफतरों में जाकर मुआवजे या सम्‍मान की भीख मांगने की बजाय मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में जाकर ईश्‍वर का आभार जताना अच्‍छा लगता है. ऐसा इसलिये क्‍योंकि उसी ने जिंदगी दी और उसी ने सेवा के अवसर.

1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान पाकिस्‍तान की सरजमीं पर कब्‍जा कर लेने वाले भारतीय जांबाजों में एक गुरचरण सिंह खनूजा को उम्र के इस मोड पर अपनी उपेक्षा का कोई मलाल नहीं.मलाल है तो इस बात का कि सरकार ने यूनि‍यन कारबाइड के आगे घुटने ही नहीं टेके उस वक्‍त गिरफ्तार किये गये कारबाइड के कर्ता धर्ता एंडरसन को भी ससम्‍मान भारत से बाहर भेज दिया.और अब इस मुद्दे पर कांग्रेस सरकार को घेरने में जुटी बीजेपी भी केंद्र की सरकार में रहते हुये इस मामले में कुछ नहीं कर पायी.जयपुर के खातीपुरा इलाके में गुमनामी के भंवर में जिंदगी की नाव को जैसे तैसे बचा रहे खनूजा को राजनीति का यह रूप ही परेशान नहीं करता,यह पीडा भी सालती है कि उनके परिवार के छह जनों को जिंदा जला देने वालों को उनके किये की सजा क्‍यों नहीं मिली?क्‍या वजह है कि 1984 के सिक्‍ख विरोधी दंगों के शिकार आज भी न्‍याय के लिये तरस रहे हैं?