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....हाशिये से.
कुछ मोती... कुछ शीप..!!!
दादरी :
दो दृश्य !!!
-एक-
बीगोद से
बाबरी तक ,
और बाबरी से
दादरी तक ..
हम बढे ,
मगर
इस तरह..
कि ,
गिरते चले गए !
सियासत के
घेरों में,
चंद वोटों के
फेरों में ,
घिरते चले गए !!
-दो -
चुभती थी
नेताओं को
कुछ यूँ .....
चरण सिंह
की वो विरासत !
जाट
वहां पाते थे
सत्ता ......
मुस्लिम
रचते
इक सियासत !
जीत लिखी
जयंत अजीत ने ,
जिन वोटों
के बूते पर !
आज वो वोट
बंटे पड़े हैं ,
मजहब की
इक खूँटी पर !
सत्ता
अजीत का,
अतीत हो गयी !
देखो
दंगाईयों की,
जीत हो गयी !
जीत
मुज्जफरपुर
आगे बढे तो,
यूपी में भी
प्रीत खो गयी !
दादरी
दंगों का ,
नया प्रयोग है !
मजहब
जाति ,
सत्ता उद्योग है !
बीफ
बहाना
भर है यारों
मकसद सत्ता
है हथियाना ...
पहले
जाट मुसलमां
भिड़े धर्म पर ....
अब क्षत्रियों को
भड़काना है !
वोट
काट कर
जाति धर्म से
मकसद,
सत्ता हथियाना है !
जिन्दा होकर
मरे पड़े जो
उनको,
बस भड़काना है !
वोट
काट कर
जाति धर्म से
मकसद,
सत्ता हथियाना है !
-श्रीपाल शक्तावत