....हाशिये से.

कुछ मोती... कुछ शीप..!!!



Monday, October 26, 2015



बेटी !


तीन दृश्य :




1.
बेटी !
जिण घर 
जळमें  नहीं 
फूट्या उणरा 
भाग .
बेटा
दे गोडा
जणा
रौवे 
माँ अर  बाप !



.
2.
बिन बेटी 
घर नईं ,
मिनखी चारो 
भी 
बेकार .
बेटा 
भख लेवे
 जणा 
माचे
हाहाकार !









3.
बूढी काया ...
जद हाँफसी,
हिम्मत
बेटी साथ.
देसी 
वा
ढाढ़स घणों,
रक्ख...
माथा 
माथै हाथ !
बेटी ...
भळ
परायी घणी,
पण 
मुश्कल मं
वा साथ !
-श्रीपाल शक्तावत



Friday, October 9, 2015

दादरी :
दो दृश्य !!!


-एक-

बीगोद से
बाबरी तक ,
और बाबरी से
दादरी तक ..
हम बढे ,
मगर
इस तरह..
कि ,
गिरते चले गए !
सियासत के
घेरों में,
चंद वोटों के
फेरों में ,
घिरते चले गए !!













-दो -


चुभती थी
नेताओं को
कुछ यूँ  .....
चरण सिंह
की वो विरासत !
जाट
वहां पाते थे
सत्ता ......
मुस्लिम
रचते
इक सियासत !

जीत लिखी
जयंत अजीत ने ,
जिन वोटों
के बूते पर !
आज वो वोट
बंटे पड़े हैं ,
मजहब की
इक खूँटी पर !
सत्ता
अजीत का,
अतीत हो गयी !
देखो
दंगाईयों की,
जीत हो गयी !
जीत
मुज्जफरपुर
आगे बढे तो,
यूपी में भी
प्रीत खो गयी !
दादरी
दंगों का ,
नया प्रयोग है !
मजहब
जाति ,
सत्ता उद्योग है !
बीफ
बहाना
भर है यारों
मकसद सत्ता
है हथियाना  ...
पहले
जाट मुसलमां
भिड़े धर्म पर ....
अब क्षत्रियों को
भड़काना है !

वोट
काट कर
जाति धर्म से
मकसद,
सत्ता हथियाना है !
जिन्दा होकर
मरे पड़े जो
उनको,
बस भड़काना है !
वोट
काट कर
जाति धर्म से
मकसद,
सत्ता हथियाना है !

-श्रीपाल शक्तावत