....हाशिये से.

कुछ मोती... कुछ शीप..!!!



Sunday, August 16, 2015

... बड़े हो गए !








... बड़े हो गए !



बुत बनकर ,
हम खड़े हो गए ...
दुनिया कहती ,
तुम बड़े हो गए...
भक्ति अंधी,
ऐसी है अब ..
सच भी
मुर्दे गड़े हो गए ...

फेंकें चाहें ,
लंबी चौड़ी ....
सच्चाई के ,
धड़े हो गए ..
बुत बनकर ,
हम खड़े हो गए ...
दुनिया कहती ,
तुम बड़े हो गए ..

वोट फंसे,
दाढ़ी -चोटी में...
सोच- सियासत,
सड़े हो गए ...
हुकूमत उनकी,
हुकुम भी उनका...
कौमी करतब
कड़े हो गए ..
बुत बनकर
हम खड़े हो गए
दुनिया कहती,
तुम बड़े हो गए !

-श्रीपाल शक्तावत 




Monday, August 3, 2015






" हिम्मत" को दाद दीजिये  !


बीस साल के आसपास ही उम्र रही होगी उस युवक की . बिना बताये वह नसीराबाद के बलवंता गांव से चुपचाप पहले बस से अजमेर के लिये निकला फिर अजमेर से मायानगरी मुम्बई के सफर पर . रेल के जरिये वह एक ऐसी मंजिल की तरफ बढ गया था जिसे हासिल करना नामुमकिन सा था. मुंबई में बडा भाई नौसेना में था सो वहां रहने के ठिकाने की उसे कोई चिन्ता नहीं थी. चिन्ता थी तो सिर्फ इस बात की कि उसके मुंबई पहुंचने के मकसद की जानकारी के बाद भाई का बर्ता्व कैसा होगा और फौजी पिता उसे इस करतब के लिये माफ करेंगे भी या नहीं .
यह युवक था इन दिनों अपनी फिल्म "भाग्य" के लिये फिल्म फेस्टिवल्स में अवार्ड और सुर्खियां बटोर रहा हिम्मत शेखावत . देश के नामी गिरामी फैशन फोटोग्राफरर्स में शुमार हिम्मत की इस   फिल्म की कहानी भी राजस्थान के दूर दराज के गांवों की असलियत के इर्द गिर्द ही है . और, फिल्म के हीरो बने एक छात्र का संघर्ष भी कमोबेश फिल्म के निर्माता निर्देशक हिम्मत शेखावत की ही तरह है .
दरअसल, अपनी मंजिल के करीब पहुंचे हिम्मत शेखावत की हिम्मत को दाद इसलिये दी जानी जरूरी है . क्योंकि,हिम्मत ने हिम्मत नहीं हारी और अपने सपनों का पीछा करता हुआ इस मुकाम तक पहुंच गया . मुंबई की डगर पर निकला तो न उसके पास मायानगरी को करीब से देखने का जरिया ​था और न ही उसके लिये जरूरी तालीम . लेकिन सपनों का पीछा करते हुये इस नौजवान ने फिल्मी दुनिया को करीब से देखने की तरकीब निकाल ही ली . यह तरकीब थी सिक्युरिटी गार्ड के बतौर नौकरी की . हिम्मत न पहले सिक्यूरिटी सर्विस में नौकरी का जुगाड किया फिर फिल्म स्टूडियो में रात दिन की डयूटी का . 
कोई भी व्यक्ति रात दिन डयूटी नहीं कर सकता लेकिन हिम्मत ने दूसरे गार्ड की जगह भी डयूटी खुद ही देने का फैसला कर राह निकाल ली . तनख्वाह वह गार्ड लेता और डयूटी हिम्मत निभाता. ज्योंहि मौका मिलता वह स्टूडियो में लगे सैट और कैमरों की तरफ पांव बढा देता . कई बार इसके लिये झिडकियां ​भी मिली और सैट पर मौजूद बाउंसर्स के धक्के भी . लेकिन स्टूडियो के सुरक्षा प्रहरी होने के नाते हर बार बचाव हो ही जाता . दरवाजे पर तैनाती की बजाय  हिम्मत को स्टूडियो के भीतर झांकता देख किसी और ने उसे नोटिस किया न किया ,अक्सर मुंबई महालक्ष्मी में  स्टूडियो प्लस में विज्ञापन शूट करने आये जाने माने फोटोग्राफर तेजल पटनी  ने उससे वजह जरूर पूछ ली .
फिल्मी दुनियां का यह जुनून उस फोटोग्राफर तेजल पटनी के लिये कुछ अलग था सो बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया . हिम्मत ने तेजल पटनी को ज्वाइन किया तब सिर्फ और सिर्फ चपरासी के रूप में. लेकिन, फिर यह रिश्ता गुरू शिष्य के रूप में बदल गया. अब हिम्मत मुंबई के फिल्म स्टूडियो में सिक्यूरिटी गार्ड के रूप में नहीं एक जूनियर फिर सीनियर फोटोग्राफर के रूप में दाखिल होने लगा था .
कयामत से कयामत तक और कभी खुशी कभी गम जैसी फिल्मों के सिनेमेटोग्राफर किरण देवंश की एक सीख हिम्म्त के लिये घुप्प अंधेरे में सूरज सरीखी रोशनी साबित हुई . देवंश ने संघर्ष करने निकले हिम्मत की लगन को देख सीख दी थी कि वह फिल्म से जुडे तो सिर्फ और सिर्फ तकनीक के जरिये .वरना मुंबई में अभिनय का सपना लेकर आने वालों के सपने मुंबई लोकल में ही दम तोड देने की कहानियां कई है .देवंश की सीख इतनी कारगर हुई कि तेजल पटनी ने हिम्मत के कंधे पर हाथ रखा तो तेजल से लेकर प्रसाद नायक और राज मिस्त्री तक हर फोटोग्राफर के साथ हिम्मत ने कंधे से कंधा मिला संघर्ष को आगे बढा लिया . रामगोपाल वर्मा की फिल्म भूत में स्टिल फोटोग्राफर का काम मिला हो चाहे देवानंद के साथ लव एट टाईमस्क्वायर के स्टिल फोटोग्राफर या सुभाष घई की फिल्म परदेस के स्क्रीन प्ले डायरेक्टर नीरज पाठक की फिल्म के स्टिल फोटोग्राफर का . हिम्मत हर जगह एक प्रशिक्षु के बतौर ही नित नये प्रयोग करते रहे .

हिम्मत को पता था कि फिल्म में जितना बडा रोल अदाकारी या निर्देशन का है ,उससे बडी भूमिका साउण्ड लाईटस और कैमरे की है . लिहाजा, कैमरे का जादू समझने और जादूगर बनकर कुछ नया करने का जुनून हिम्मत के सिर पर भूत की तरह सवार हो गया था .और एक बार हिम्मत के कैमरे में कैद फोटोग्राफस फिल्मी दुनियां के दिग्गजों की निगाह में आये तो फिर असाईनमेंटस की कोई कमी नहीं रही .हिम्मत के कैमरे में कैद प्रोफाइल फिल्मी पोस्टर्स पर तो छाये ही ,कई नामी गिरामी पब्लिेकेशंस से  भी हिम्मत को स्पेशल सूट के प्रस्ताव मिलने लगे .
 चार साल के शुरूआती संघर्ष के बाद हिम्मत की फोटोग्राफी पर जाने माने फिल्मकार प्रकाश मेहरा की निगाह पडी तो लगा मुकाम मिल गया . लेकिन महज सात महीने में ही मन उचाट हो गया और हिम्मत फिर कुछ नया करने की चाह में कैमरा थामे निकल पडे.इस बीच अजमेर जिले के ही सिंगावल गांव की उषा राठौड हिम्मत की हमसफर बनी तो कला कविता और साहित्य के जरिये उषा के जेहन में समायी क्रियेटिविटी हिम्मत की फैशन फोटोग्राफी में एक नयी ताकत बन गयी .
सदाबहार देवानंद से लेकर राजकुमार हीरानी और रामगोपाल वर्मा तक न जाने कितनी फिल्मी और शोभा डे, प्रसून जोशी जैसी कई साहित्यिक हस्तियों को अपने कैमरे में कैद कर चुके "बलवंता के इस बालक" ने पल्सर, रूपा, थर्माकोट, जॉय, टाटा नैनो ,रिलायंस डिजीटल, बिसलरी ,गैस आॅ फास्ट, न्यूयॉर्क सिग्नेचर, रीबॉक, निओ क्रिकेट और आॅनिडा जैसे कई उत्पादों के लिये भी अपने कैमरे का जौहर दिखाया . लेकिन थोडा  सुकून तब मिला जब उषा की कहानी पर खुद की फिल्म बनाने का सपना आकार लेकर फिल्म "भाग्य" के जरिये फिल्म फेस्टिवल्स में नजर आया . बकौल हिम्मत "भाग्य उस सपने की शुरूआत भर है जिस सपने के लिये उसने मुंबई की राह पकडी थी ."



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