टीआरपी की भागमभाग के इस दौर में टेलीविजन पर मानवीय संवेदनाओं से जुडी कहानियों को अब कम ही वक्त मिल पाता है.लेकिन मैं इस मामले में खुशनसीब हूं कि पहले सहारा समय में हाशिये पर जिंदगी जीते इंसानों पर स्टोरी करने का मौका मिलता रहा.और अब वॉयस ऑफ इंडिया के बाद सीएनईबी में भी राहुलदेवजी ऐसे ही काम के अवसर दे रहे हैं.बीते दिनों सीएनईबी के लिये खबर करते हुये एक ऐसे ही शख्स से मुलाकात हुई.जिसके काम की जितनी तारीफ की जाये, कम है. यकीन न हो तो आप भी गौर कर लीजिये इस कहानी पर.
आम तौर पर लोग हादसों से हताश हो जाते हैं लेकिन ऐसे लोगों की भी समाज में कोई कमी नहीं,जो हादसों से उबरकर सफलता की नयी इबारत लिख डालते हैं.भरी जवानी में अपनी आंखों की रोशनी गंवा चुके एक शख्स ने भी ऐसी ही इबारत लिख दी है.यह शख्स खुद अंधियारे में है लेकिन जूनून के साथ दूसरों की जिंदगी रोशन करने में जुटा हुआ है.दष्टिहीनों के लिये यह शख्स सफलता का स्ञोत है और दूसरे द्रष्टिहीनों के लिये बना है एक ऐसा मसीहा-जो उनके दर्द हर लेता है।
राजस्थान के पाली शहर से आये श्याम जायसवाल के जीवन में गजानंद अग्रवाल नाम का यह शख्स नहीं आता तो जिंदगी सचमुच बहुत ही मुश्किल बन जाती.पहले पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एमए तक की पढाई कर चुके श्याम जायसवाल की आंखों ने रेटिना डिटेचमेंट के चलते जवाब दे दिया फिर दो साल तक श्याम के अंधेपन को शर्मिंदगी का सबब मानते हुये घर वालों ने एक कमरे में कैद कर दिया. फिर लगा कि श्याम जायसवाल अब सिर्फ और सिर्फ बोझ बन गया है इसलिये परिजनों ने किसी भी तरह की मदद से इंकार कर घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बेचारी मां बिलखती रही।जैसे तैसे अपनी अंटी में बचाये गये कुछ रूपये भी चोरी छिपे बेटे को दिये.लेकिन इतनी हिम्मत नहीं जुटा पायी कि बेटों और पति के फैसले के खिलाफ खडी हो सके.ऐसे में जिंदगी किसी फुटपाथ पर ही गुजरने के आसार बन गये थे लेकिन किसी भले मानुष ने श्याम जायसवाल को जयपुर में नैञहीनों के लिये प्रशिक्षण केंद्र चला रहे गजानंद अग्रवाल तक पहुंचा दिया.अब श्याम जायसवाल की अंधी आंखों में भी भविष्य के सपने तैरने लगे हैं.
अपनी सूनी आंखों में बेहतरी के सपने संजोने वालों में श्याम जायसवाल अकेले नहीं है. गजानंद अग्रवाल नाम के इस शख्स ने अब तक कोई दो सौ नैञहीनों की इसी तरह जिंदगी बदल दी है.और अग्रवाल के पास रहकर भविष्य संवारने में जुटे प्रवीण पांडेय और सुरेश जटिया के शब्दों में कहें तो नौजवानों को इस अंधियारे से निकलकर सफलता की राह दिखाने का उनका यह जूनून दिनों दिन रंग दिखा रहा है.नैञहीनों को जिंदगी के अंधियारों से सफलता का उजाला दिखाने की मुहिम में लगे गजानंद अग्रवाल की आंखों ने भी श्याम जायसवाल की तरह धोखा दे दिया था.लेकिन हताश होने की बजाय गजानंद अग्रवाल ने न सिर्फ खुद को भविष्य के लिये तैयार किया बल्कि बीते कई सालों में अपनी ही तरह के दूसरे नैञहीनों को भी सफलता की राह दिखा दी है.प्रतियोगी परीक्षाओं में द्रष्टिहीन द्रष्टिवानों से किसी भी तरह पिछड नहीं जायें इसी चिंता के चलते गजानंद अपने हॉस्टल में न केवल ऑडियो के जरिये द्रष्टिहीनों को पढा रहे हैं बल्कि ब्रेल लिपि से तैयार की गई सामान्य ज्ञान की पुस्तिका के सहारे तैयारी भी करा रहे हैं.
दिन भर की पढाई के बाद गोविंद कभी अपने नैञहीन शिष्यों को कम्प्यूटर का ज्ञान देने की कवायद करते हैं तो कभी संगीत की स्वरलहरियों के सहारे उनका तनाव हल्का करने की कोशिश करते हैं.गजानंद के लिये सफलता का फलसफा है तो सिर्फ एक-जो भी हालात हों,इंसान को सफलता का रास्ता तलाश कर जीवन को सुखद बना लेना चाहिये.और, इसी फलसफे को अपना मूल मंञ बनाकर गजानंद अग्रवाल अंधी आंखों में सफलता के सपने गढने में जुटे हुये है. द्रष्टिहीनों को सफलता की राह दिखाना आसान काम नहीं.लेकिन द्रष्टि बाधितों के लिये मसीहा बने गजानंद अग्रवाल ने इसे बेहद आसान कर दिया है.और यह भी बिना किसी सरकारी मदद के .खुद के बूते खडे होकर.
दसवीं में आंखों की रोशनी कम होती दिखायी दी. तब गजानंद का सपना था-डाक्टर बनकर लोगों की सेवा करना.लेकिन शनै शनै आंखों की रोशनी के चले जाने का दर्दनाक सच कुछ इस तरह सामने आया कि गजानंद ही नहीं परिवार के सभी लोग सन्न रह गये.लेकिन हालात के आगे हाथ खडे कर देने की बजाय गजानंद अग्रवाल ने फिजियो थैरेपी के जरिये लोगों की सेवा का रास्ता निकाल लिया.अहमदाबाद से फिजियो थैरेपी का कोर्स करने के बाद गजानंद अग्रवाल ने जयपुर में अपनी प्रेक्टिस शुरू की और यह प्रेक्टिस कुछ इस तरह चल निकली कि इलाज कराने वाले दूर दूर से आने लगे.इलाज कराने के लिये सीकर जिले के एक गांव से आने वाले विनोद सिंघल की मानें तो गजानंद के हाथों में सचमुच करिश्मा है.वे मरीजों के लिये दवा भी करते हैं और दुआ भी.
फिजियो थैरेपी के जरिये लोगों का इलाज कर अपनी आय का जरिया बनाने और बढाने के बाद गजानंद अग्रवाल ने हॉस्टल की शुरूआत की थी. जहां से अब तक करीब दो सौ नैञहीन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सफलता की डगर पर आगे बढ गये हैं और लगातार मिली इस सफलता का असर ऐसा कि गजानंद अग्रवाल और उनकी पत्नि अनुराधा अग्रवाल इसी को जीवन का मकसद बना कर जुटे हुये हैं नर सेवा नारायण सेवा का संदेश देने में.गजानंद अग्रवाल की पत्नि अनुराधा अग्रवाल तो इस मुहिम में कुछ इस तरह का सुकून पा रही है कि एक साथ बीस बीस जनों का खाना बनाकर भी खुद को हर घडी ताजगी में डूबी हुई महसूस करती है और अपनापन ऐसा कि अनुराधा को परिवार के इन सदस्यों के बिना अब जिंदगी ही बेमानी नजर आने लगी है.
वर्ल्डक्लास सिटी बनने का सपना देख रही गुलाबीनगरी की एक अच्छी खासी आबादी हर शहर की तरह कच्ची बस्तियों में हाशिये पर जिंदगी जीती हैं लेकिन विश्वकर्मा इंडस्ट्रियल इलाके से सटी कच्ची बस्ती में रहकर नैञहीनों को सफलता की राह दिखा रहे गजानंद अग्रवाल ने एक अनूठी शुरूआत की है.इस शुरूआत का असर यह कि कोई दो सौ द्रष्टिहीन युवकों को नौकरी ही नहीं मिली.हालात से लडने का हौसला भी मिला है गजानंद अग्रवाल की इस मुहिम के जरिये.और हाशिये पर रहकर भी दूर तक का सपना देख रहे गजानंद के मन की मुराद है तो सिर्फ यही कि उनकी यह शुरूआत एक ऐसे अभियान का रंग ले ले.जो हर जरूरतमंद नैञहीन और निशक्त की जिंदगी में रंग भर दे.