है जूनून !
स्थान -आगरा का पांच सितारा होटल .
समय - दिन के 2 बजे .
अवसर -लिंग अनुपात और कन्या भ्रूण हत्या पर एक सेमिनार .
सात साल पहले का वह दिन आज सुबह एक खबर पढने के साथ ही फ़िल्मी दृश्य की तरह आँखों की तरह आ गया . छरहरे बदन का एक जवान लिंग जांच के खिलाफ छेड़े गए अपने अभियान के बारे में जानकारी दे रहा था . और ... मैं अलसायी आँखों और उबासियों के बीच इस जवान की बातें सुने जा रहा था . अनुभव दिलचस्प थे सो उन्हें सुनने का मोह चाह कर भी नहीं छोड़ पा रहा था . लेकिन मुझ जैसे ग़ुरबत से गुजरे ग्रामीण परिवेश के किसी व्यक्ति को भरपेट भोजन के बाद बढ़िया वातानुकूलित माहौल मिले तो नींद से पीछा छुड़ाना भी असंभव सा था . अनुभव सुनाने के बाद इस जवान से रूबरू हुआ तो पता चला यह सख्श कोई और नहीं 2003 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी नीरज के पवन हैं और भरतपुर में प्रोबेशन के दौरान की पोस्टिंग पर हैं .
क्लिनिकल साइकोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट नीरज के पवन उस वक्त भरतपुर में उप खंड अधिकारी के रूप में कार्यरत थे और जिले में सोनोग्राफी सेंटर्स की ऑडिट कर लिंग जांच के खिलाफ अभियान को आगे बढ़ा रहे थे . उनके अनुभवों को सुन यह यकीन करना मुश्किल था कि कोई आई ए एस इस स्टार पर सक्रिय हो, इस समस्या के खिलाफ अभियान की अगुवाई करे .यह भरोसा इसलिए भी मुश्किल था क्योंकि 2005 - 2006 में कन्या भ्रूण हत्या और लिंग जांच के खिलाफ स्टिंग के दौरान हम भरतपुर और आगरा के डाक्टरों के नेक्सस को भी करीब से देख चुके थे और लिंग जांच के खिलाफ बनाये गए कानून के खुल्लमखुल्ला उल्लंघन को भी छिपे हुए कैमरे में कैद कर चुके थे .लेकिन, नीरज के पवन के काम पर अविश्वास का भी कोई कारण इसलिए नहीं था क्योंकि देश में कोख में बेटियों के क़त्ल और लिंग जांच के खिलाफ कानून लागू करने पर सरकार को मजबूर करने वाले साबू जॉर्ज जैसे सख्श नीरज के अनुभवों को सुन तालियां बजाये जा रहे थे .
उस वक्त हम सिस्टम का एक अलग ही रूप देख रहे थे और अदालतों से लेकर सरकारी गलियारों तक स्टिंग को साबित करने की लड़ाई में खुद को खपाए जा रहे थे . लिहाजा एक आई ए एस के इस तरह के अनुभवों को स्वीकारने को मेरा मन सहसा तैयार नहीं था . लेकिन कुछ सालों के बाद जाने माने कॉमेंटेटर और मेरे प्रेरक मुकुल गोस्वामी के साथ पाली एक कार्यक्रम में गया तो पता चला वही सख्श मंच से परे बूढ़े बुजुर्गों का आशीर्वाद और स्नेह हासिल कर रहा है . वो भी तब जब कलेक्टर के रूप में अपनी सेवाएं देकर पाली से विदा हो गए ,लेकिन कन्याओं की बहबूदी के लिए शुरू किये गए बेटी बचाओ अभियान को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत करने आये हुए थे .
उस मुलाक़ात के बाद नीरज के पवन से कई बार संवाद हुए . और कई कार्यक्रमों में मंच भी साझा किये .लेकिन बी बी सी से जुड़े रहे डेविड ब्राऊन ने नीरज के पवन से मुलाक़ात के बाद मुझे उनका रेफरेंस देने के लिए शुक्रिया अदा किया तो लगा मैंने एक सही व्यक्ति को सही व्यक्ति का अता- पता दिया था .
कुछ दिनों पहले - छह सात जुलाई को नीरज के पवन दुर्घटना में घायल एक लड़की के इलाज की खातिर डाक्टरों की झिड़कियां खाने के चक्कर में खबरों का हिस्सा बने थे . और,आज 26 जुलाई को सड़क दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत और टक्कर मारने वाले ड्राईवर की गिरफ्तारी से जुडी खबर में नीरज के पवन की मानवता और कर्त्तव्य परायणता को देख सात साल पुराना दृश्य फ़िल्मी रील की तरह घूम गया . यूँ तो नीरज बतौर आई ए एस गुर्जर आंदोलन के वक्त भी सरकार और आंदोलनकारियों के बीच सेतु का काम कर चुके हैं . लेकिन संवेदनहीन होते समाज और सरोकारों के बीच उपजते सेतु का यह जूनून देख नीरज के पवन को सेल्यूट करने का मन करता है . एक बारगी नीरज को कॉल भी किया लेकिन नंबर आऊट ऑफ़ रीच था , सो सोचा सोशल मीडिया के जरिये ही उन तक पहुंचा जाए .और, बताया जाए कि सेवा से जुडी खबरें पाठकों को कैसे प्रभावित करती हैं .
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स्थान -आगरा का पांच सितारा होटल .
समय - दिन के 2 बजे .
अवसर -लिंग अनुपात और कन्या भ्रूण हत्या पर एक सेमिनार .
सात साल पहले का वह दिन आज सुबह एक खबर पढने के साथ ही फ़िल्मी दृश्य की तरह आँखों की तरह आ गया . छरहरे बदन का एक जवान लिंग जांच के खिलाफ छेड़े गए अपने अभियान के बारे में जानकारी दे रहा था . और ... मैं अलसायी आँखों और उबासियों के बीच इस जवान की बातें सुने जा रहा था . अनुभव दिलचस्प थे सो उन्हें सुनने का मोह चाह कर भी नहीं छोड़ पा रहा था . लेकिन मुझ जैसे ग़ुरबत से गुजरे ग्रामीण परिवेश के किसी व्यक्ति को भरपेट भोजन के बाद बढ़िया वातानुकूलित माहौल मिले तो नींद से पीछा छुड़ाना भी असंभव सा था . अनुभव सुनाने के बाद इस जवान से रूबरू हुआ तो पता चला यह सख्श कोई और नहीं 2003 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी नीरज के पवन हैं और भरतपुर में प्रोबेशन के दौरान की पोस्टिंग पर हैं .
क्लिनिकल साइकोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट नीरज के पवन उस वक्त भरतपुर में उप खंड अधिकारी के रूप में कार्यरत थे और जिले में सोनोग्राफी सेंटर्स की ऑडिट कर लिंग जांच के खिलाफ अभियान को आगे बढ़ा रहे थे . उनके अनुभवों को सुन यह यकीन करना मुश्किल था कि कोई आई ए एस इस स्टार पर सक्रिय हो, इस समस्या के खिलाफ अभियान की अगुवाई करे .यह भरोसा इसलिए भी मुश्किल था क्योंकि 2005 - 2006 में कन्या भ्रूण हत्या और लिंग जांच के खिलाफ स्टिंग के दौरान हम भरतपुर और आगरा के डाक्टरों के नेक्सस को भी करीब से देख चुके थे और लिंग जांच के खिलाफ बनाये गए कानून के खुल्लमखुल्ला उल्लंघन को भी छिपे हुए कैमरे में कैद कर चुके थे .लेकिन, नीरज के पवन के काम पर अविश्वास का भी कोई कारण इसलिए नहीं था क्योंकि देश में कोख में बेटियों के क़त्ल और लिंग जांच के खिलाफ कानून लागू करने पर सरकार को मजबूर करने वाले साबू जॉर्ज जैसे सख्श नीरज के अनुभवों को सुन तालियां बजाये जा रहे थे .
उस वक्त हम सिस्टम का एक अलग ही रूप देख रहे थे और अदालतों से लेकर सरकारी गलियारों तक स्टिंग को साबित करने की लड़ाई में खुद को खपाए जा रहे थे . लिहाजा एक आई ए एस के इस तरह के अनुभवों को स्वीकारने को मेरा मन सहसा तैयार नहीं था . लेकिन कुछ सालों के बाद जाने माने कॉमेंटेटर और मेरे प्रेरक मुकुल गोस्वामी के साथ पाली एक कार्यक्रम में गया तो पता चला वही सख्श मंच से परे बूढ़े बुजुर्गों का आशीर्वाद और स्नेह हासिल कर रहा है . वो भी तब जब कलेक्टर के रूप में अपनी सेवाएं देकर पाली से विदा हो गए ,लेकिन कन्याओं की बहबूदी के लिए शुरू किये गए बेटी बचाओ अभियान को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत करने आये हुए थे .
उस मुलाक़ात के बाद नीरज के पवन से कई बार संवाद हुए . और कई कार्यक्रमों में मंच भी साझा किये .लेकिन बी बी सी से जुड़े रहे डेविड ब्राऊन ने नीरज के पवन से मुलाक़ात के बाद मुझे उनका रेफरेंस देने के लिए शुक्रिया अदा किया तो लगा मैंने एक सही व्यक्ति को सही व्यक्ति का अता- पता दिया था .
कुछ दिनों पहले - छह सात जुलाई को नीरज के पवन दुर्घटना में घायल एक लड़की के इलाज की खातिर डाक्टरों की झिड़कियां खाने के चक्कर में खबरों का हिस्सा बने थे . और,आज 26 जुलाई को सड़क दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत और टक्कर मारने वाले ड्राईवर की गिरफ्तारी से जुडी खबर में नीरज के पवन की मानवता और कर्त्तव्य परायणता को देख सात साल पुराना दृश्य फ़िल्मी रील की तरह घूम गया . यूँ तो नीरज बतौर आई ए एस गुर्जर आंदोलन के वक्त भी सरकार और आंदोलनकारियों के बीच सेतु का काम कर चुके हैं . लेकिन संवेदनहीन होते समाज और सरोकारों के बीच उपजते सेतु का यह जूनून देख नीरज के पवन को सेल्यूट करने का मन करता है . एक बारगी नीरज को कॉल भी किया लेकिन नंबर आऊट ऑफ़ रीच था , सो सोचा सोशल मीडिया के जरिये ही उन तक पहुंचा जाए .और, बताया जाए कि सेवा से जुडी खबरें पाठकों को कैसे प्रभावित करती हैं .
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